Wednesday 15 July 2015

पार्टी का विस्तार, कार्यकर्ताओं का संस्कार अमित शाह की प्रतिबद्धता


- भरतचन्द्र नायक 
राजनीति में लगातार कदम आगे बढ़ाते जाना हर व्यक्ति का नसीब नहीं होता, जीत और हार उसका पीछा करती है, लेकिन ऐसे बिरले व्यक्ति होते है, जय और विजय जिनकी गोदी में अठखेलियां करती है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 1989 से 2014 के बीच 25 वर्षों में 42 चुनावों का सामना किया और हर चुनाव में जय का वरण किया। इस तरह कहें तो अमित शाह का जय-विजय से अटूट रिष्ता है। यह भी सौभाग्य की बात है कि अमित शाह के एक ही पुत्र रत्न है और उसका नाम करण भी जय शाह किया गया है, इसलिए कहा जाता है कि जय विजय अमित शाह की गोदी में अठखेलियां करती है, लेकिन यह भी एक यथार्थ है कि अमित शाह ने अपने राजनैतिक जीवन में भले ही यष और विजय पायी हो, लेकिन दुर्भाग्य ने भी इनका पीछा नहीं छोड़ा। यह अलग बात है कि अमित शाह की हर मुसीबत और कठिनाई ने इनके हौंसले को फौलाद में बदला और अंतिम विजय इनकी हुई। आपदाएं या तो पराजित हुई अथवा इनका साथ छोड़ गयी और इन्होने अपने जीवन में चुनाव लड़ने में ऐसी महारात हासिल की है कि विरोधी परास्त हुए और विजय का रिकार्ड अमित शाह के साथ दर्ज हुआ। उत्तर प्रदेश जैसे कठिन राज्य में जहां भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव में कभी 10 से अधिक सीटों पर विजय नहीं मिली 2014 में 80 में से 71 सीटों पर कमल खिला, जिससे केन्द्र में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम-खम पर बहुमत हासिल किया, सरकार बनाई। अमित शाह चुनाव के षिल्पकार करार दिये गये। यह भी इनका सौभाग्य रहा कि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी और अटलबिहारी वाजपेयी के लोकसभा चुनाव में गुजरात में रणनीति तय करनें और विजय दिलाने का श्रेय अमित शाह को ही मिला। इसमें नरेन्द्र मोदी की व्यूहरचना काम आयी, क्योंकि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने चुनावी रणनीति में ताना-बाना बुनने में परस्पर सहयोगी की भूमिका 1982 में महाविद्यालयीन राजनीति से आरंभ हो चुकी थी।
अमित शाह का जन्म 22 अक्टूबर 1964 में तत्कालीन महाराष्ट्र प्रदेष के मुंबई में एक संपन्न परिवार में हुआ। मेहसाणा में पढ़ाई की और बायो-केमिस्ट्री में अध्ययन हेतु महाविद्यालयीन पढ़ाई अहमदाबाद (गुजरात) में की। अपने पिता के प्लास्टिक पाईप के कारोबार में पहले पहल इन्होनें रूचि ली। लेकिन राजनीति का जो रूझान कॉलेज में पैदा हुआ था, उसने इन्हें राजनैतिक क्षेत्र में सक्रिय बना दिया। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के स्वंयसेवक के रूप में काम करते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गये। नरेन्द्र मोदी का 1982 में कॉलेज के दौर में जिस तरह सानिध्य प्राप्त हुआ, विद्यार्थी परिषद में इनका कद और भी ऊंचा हो गया। भारतीय जनता पार्टी में 1986 में प्रवेष किया तब इन्हें 1987 में युवा मोर्चा की जिम्मेदारी मिल गयी। आपने 1991 में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी के चुनाव का दायित्व कुषलतापूर्वक संभाला। इसके बाद 1996 में जब अटलबिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ा, अमित शाह उनके प्रचार अभियान के प्रभारी बनाये गये। राजनीति में अमित शाह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और खुद गुजरात विधानसभा उप चुनाव सरखेज से अपना भाग्य आजमाया। सफलता प्राप्त कर विधायक बन गये, बाद में सहकारिता के क्षेत्र में भी पदार्पण कर 1999 में अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गये। क्रिकेट संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष बने और जब नरेन्द्र मोदी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, इन्हें क्रिकेट एसोसिऐषन के अध्यक्ष पद का गौरव प्राप्त हुआ।
अमित शाह ने सरखेज उपचुनाव से जो विजय यात्रा आंरभ की अनवरत् 1998, 2002 ओर 2007 में उसी क्षेत्र से विजय हासिल की सरखेज की जनता ने सर माथे पर बैठाया। तथा 2012 में नरनपुरा विधानसभा क्षेत्र से भी विधायक चुने गये। 2003 से 2012 तक आपने गुजरात में गृह मंत्रालय संभाला और प्रदेश में कानून व्यवस्था को इस तरह संभाला कि हर वर्ष परंपरागत ढंग से होने वाले फसाद की दुखद यादे आम आदमी के मानस पटल से तिरोहित हो गयी। आम आदमी को जगन्नाथ यात्रा, होली, दिवाली, ईद, रमजान के पर्वो में गंगा जमुनी संस्कृति की अनुमति होने लगी। पर्वो को गरिमा प्रदान की। गेंहू के साथ घुन भी पिस जाता है, यह कहावत राजनीति में अक्षरशः चरितार्थ होती है और अमित शाह भी अपवाद नहीं रहे। ध्येय निष्ठा और कड़े अनुषासन प्रियता के कारण गुजरात के तत्कालीन मुुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादी लाबी का शिकार बने।                    
अमित शाह को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। 2004 में हुई मुठभेड़ में इशरत जहां, जीशान जोहर, अमजद अली राणा के साथ प्राणेष मारे गये थे। इन्हंे अवांछित तत्व माना जाता था, तब इस मुठभेड़ का असल प्रयोजन इस गिरोह पर नरेन्द्र मोदी की हत्या का षड़यंत्र रचने और क्रियान्वित करनें की मंषा से आना बताया गया था, जो सत्य के निकट था। जब इस मामलें को फर्जी बताकर जांच प्रायोजित कराई तब किन्ही तत्वों ने इस मुठभेड़ पर सवालिया निषान लगाया और अमित शाह को भी सह अभियुक्त बनाये जाने की अपील कर दी। आतंकवाद को लेकर दोहरे मापदड पर ही धर्म निरपेक्षता टिक कर रह गयी है, लेकिन झूठ के पांव नहीं होते, वह जल्दी लड़खड़ा जाता है। झूठ पराजित हुआ, अमित शाह को 15 मई 2014 को सीबीआई की विशेष अदालत ने ससम्मान बरी कर दिया। लेकिन सोहराबुद्दीन शेख की फर्जी मुठभेड़ कांड में इन्हें पुलिस के ही एक वरिष्ठ अधिकारी के आरोप का षिकार बनना पड़ा। 22 जुलाई 2010 को अमित शाह को गिरफ्तारी का सामना भी करना पड़ा। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कदाचित यह एक अजीब संयोग है कि 2002 से 2012 तक नरेन्द्र तोदी को धर्म निरपेक्षता के अलंबरदारों ने कभी नहीं बख्शा और हर मौके का इंतजार ही नहीं किया अपितु राजनैतिक मिसाईलों के जरिये उनकी छवि को धूमिल करनें में कसर नहीं छोड़ी, जिससे नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को मीडिया ट्रायल से भी रूबरू होना पड़ा। लेकिन इस युति ने गोस्वामी तुलसीदास की इस पंक्ति को एक युग तक जीकर बता दिया जो आज दुर्लभ है।
‘‘धीरज, धर्म, मित्र अरू नारी.....आपतकाल परखिये चारी‘
मीडिया ट्रायल पर इनकी खामोषी को भले ही कमजोरी माना गया, लेकिन वह इनकी अदृष्य शक्ति थी जिसने नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को अपने ध्येय में अडिग बने रहने की शक्ति प्रदान की। सत्य कभी पराजित नहीं होता यही नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का विश्वास है, जीत सत्य की होती है। यह भी प्रमाणित हो गया। देश के राजनेताओं में कदाचित यह धैर्य और साहस आज दुर्लभ हो चुका है। अमित शाह और नरेन्द्र मोदी का धैर्य और साहस वास्तव में अभिनंदनीय है। उनकी इसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें शीर्ष तक पहंुचाया और इकबाल बुलंद किया। विश्व में छवि नरेन्द्र मोदी के शब्द का आकर्षण है तो उसके पीछे यही शक्ति है।
अनहोनी को होनी बनाना अमित शाह का शगल
26 मई 2014 को लोकसभा चुनाव में विजय के बाद नरेन्द्र मोदी ने देष में पहले भारतीय जनता पार्टी मंत्रिमंडल का गठन कर गौरव प्राप्त किया। तब राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह गृहमंत्री मनोनीत कर दिये गये और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए योग्य व्यक्ति की तलाष शुरू होते ही अमित शाह का नाम सुर्खियों में आया। लेकिन एक ही राज्य से प्रधानमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को सहन किये जाने पर प्रष्न उठाये जाने लगे। अंत में नरेन्द्र मोदी के विष्वस्त और शाह की संगठनपुटता की जीत हुई। राष्ट्रीय अध्यक्ष का सेहरा अमित शाह के सिर पर बांध दिया गया। उत्तर प्रदेश में पार्टी की ऐतिहासिक विजय ने इसके विरोध के सारे तर्कों को वेअसर कर दिया। अमित शाह ने पार्टी का सदस्यता महाअभियान जिस शिद्दत के साथ आरंभ किया और 10 करोड़ सदस्य बनाये जाने का लक्ष्य रखा, उनके लौह संकल्प ने देश की सभी 30 राज्य इकाईयों को सक्रिय बना दिया। भारतीय जनता पार्टी विष्व की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और सदस्यता का सिलसिला 10 करोड़ से आगे बढ़कर 12 करोड़ तक पहुंच रहा है, इसके थमने का क्रम पता नहीं है। मिस्ड कॉल की काफी हंसी उड़ायी गयी। लेकिन जब सदस्यता महाअभियान के अगले चरण में महासंपर्क अभियान आरंभ हुआ, कार्यकर्ताओं को नवागत सदस्यों से संवाद करनें का जो अवसर मिला कार्यकर्ताओं की क्षमता में निखार ही नही आया, बल्कि उनकी स्वीकार्यता के विस्तार में भी पंख लग गये है। भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता संपर्क महाअभियान के समापन के बाद प्रशिक्षण की तत्परता से प्रतीक्षाकर रहे है। 15 लाख कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण वास्तव में विश्व की राजनीति में एक अनूठा अनुष्ठान और अनुभव बनने जा रहा है। पार्टी का हर सदस्य कार्यकर्ता के संस्कारों से चिपककर भारत की नागरिकता को विश्व में सर्वोच्च साबित करने में सक्षम होगा।


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